शिखा का महत्त्व क्यों ? ( शिर पर चोटी रखने का महत्त्व क्यों ?)
प्रणाम दोस्तों
अक्षर आप देखते होंगे की कई ब्रह्मिन शिर के ऊपर शिखा रखते हे परन्तु शाश्त्र के अनुसार सभी हिंदू को शिखा रखनी चाहिए | शिखा को हिंदू धर्म का उपलक्षण माना गया हे | प्रकृति और विज्ञानं के नियमों को ध्यान में रख कर यह शिखा शास्त्र तैयार किया गया हे | मनु भगवान ने प्रत्येक व्यक्ति को शिखा संस्कार यानी चूडाकर्म करने को कहा हे | शिखा कितनी बड़ी हो, इस सम्बन्ध में शास्त्र का वचन हे की इसका आखर गोखुर के बराबर होना चाहिए |
शिखा का मर्म समजने के लिए हमें सर्वप्रथम मस्तक की रचना समजनी चाहिए | मस्तक के दो भाग होते हे जो आपस में जुड़े होते हे | शारीर के अंदर तिन नाडिया प्रवाह करती हे, इंडा, पिंगला और सुषुम्ना नाडी में से सुषुम्ना नाडी मस्तक के दोनों कपालो के मध्य से उर्ध्व दिशा की और जाती हे | वैसे मानव उत्क्रांति का सर्वोस्च पड़ाव आत्मसाक्षात्कार हे | यह आत्मसाक्षात्कार सुषुम्ना नाडी के माध्यम से होता हे | और सुषुम्ना नाडी अपान मार्ग से होते हुई मस्तक द्वारा ब्रह्मरंध में विलीन हो जाती हे | ब्रह्मरंध ज्ञान, कर्म और इच्छा - इन तीनों शक्तियो का संगम हे | इसी कारन मस्तक के अन्य भागो की अपेक्षा ब्रह्मरंध को अधिक ठंडापन स्पर्श करता हे | इस लिए उतने भाग पर केश होना बहुत आवश्यक हे| बहार के वातावरण में ठण्ड होंने पर भी यह शिखा के केश के कारन शिर के ऊपर ब्रह्मरंध में पर्याप्त रूप से उष्णता बनी रहती हे |
यजुर्वेद में शिखा को इन्द्र्योनी कहा गया हे | हमारे शारीर में कर्म - ज्ञान और इच्छा की उर्जा ब्रह्मरंध के माध्यम से ही इन्दिर्यो को प्राप्त होती हे | अगर सीधे सादे शब्दों में कहे तो ये हमारे शारीर का एंटेना हे - जैसे दूरदर्शन और आकाशवाणी के प्रसारण को हम एंटेना के माध्यम से पकड़ते हे ठीक उसी तरह ब्रह्माण्ड की उर्जा प्राप्त करने के लिए शिखा अत्यंत आवश्यक हे | इसे अंग्रेजी भाषा में "पिनिअल ग्लेंड" कहा जाता हे | इस ग्रंथि का सही स्थान ब्रह्मरंध के पास रहता हे - यह ग्रंथि जितनी ज्यादा संवेदनशील होती हे, मानव का विकास उतना ही अधिक होता हे |
मन्त्र पुरुश्चरण और अनुष्ठान के समय शिखा को गांठ मारनी चाहिए | इसका कारण यह हे की गांठ मारने से मन्त्र स्पंदन द्वारा उत्पन्न होने वाली उर्जा शारीर में एकत्रित होती हे | और शिखा की वजह से यह उर्जा बहार जाने से रुक जाती हे | और हमें मन्त्र और जप का सम्पूर्ण लाभ प्राप्त होता हे
रेमेडियल एस्ट्रोलोजर ऋषि पंड्या - वड़ोदरा - गुजरात मोबाईल : 9824162904
प्रणाम दोस्तों
अक्षर आप देखते होंगे की कई ब्रह्मिन शिर के ऊपर शिखा रखते हे परन्तु शाश्त्र के अनुसार सभी हिंदू को शिखा रखनी चाहिए | शिखा को हिंदू धर्म का उपलक्षण माना गया हे | प्रकृति और विज्ञानं के नियमों को ध्यान में रख कर यह शिखा शास्त्र तैयार किया गया हे | मनु भगवान ने प्रत्येक व्यक्ति को शिखा संस्कार यानी चूडाकर्म करने को कहा हे | शिखा कितनी बड़ी हो, इस सम्बन्ध में शास्त्र का वचन हे की इसका आखर गोखुर के बराबर होना चाहिए |
शिखा का मर्म समजने के लिए हमें सर्वप्रथम मस्तक की रचना समजनी चाहिए | मस्तक के दो भाग होते हे जो आपस में जुड़े होते हे | शारीर के अंदर तिन नाडिया प्रवाह करती हे, इंडा, पिंगला और सुषुम्ना नाडी में से सुषुम्ना नाडी मस्तक के दोनों कपालो के मध्य से उर्ध्व दिशा की और जाती हे | वैसे मानव उत्क्रांति का सर्वोस्च पड़ाव आत्मसाक्षात्कार हे | यह आत्मसाक्षात्कार सुषुम्ना नाडी के माध्यम से होता हे | और सुषुम्ना नाडी अपान मार्ग से होते हुई मस्तक द्वारा ब्रह्मरंध में विलीन हो जाती हे | ब्रह्मरंध ज्ञान, कर्म और इच्छा - इन तीनों शक्तियो का संगम हे | इसी कारन मस्तक के अन्य भागो की अपेक्षा ब्रह्मरंध को अधिक ठंडापन स्पर्श करता हे | इस लिए उतने भाग पर केश होना बहुत आवश्यक हे| बहार के वातावरण में ठण्ड होंने पर भी यह शिखा के केश के कारन शिर के ऊपर ब्रह्मरंध में पर्याप्त रूप से उष्णता बनी रहती हे |
यजुर्वेद में शिखा को इन्द्र्योनी कहा गया हे | हमारे शारीर में कर्म - ज्ञान और इच्छा की उर्जा ब्रह्मरंध के माध्यम से ही इन्दिर्यो को प्राप्त होती हे | अगर सीधे सादे शब्दों में कहे तो ये हमारे शारीर का एंटेना हे - जैसे दूरदर्शन और आकाशवाणी के प्रसारण को हम एंटेना के माध्यम से पकड़ते हे ठीक उसी तरह ब्रह्माण्ड की उर्जा प्राप्त करने के लिए शिखा अत्यंत आवश्यक हे | इसे अंग्रेजी भाषा में "पिनिअल ग्लेंड" कहा जाता हे | इस ग्रंथि का सही स्थान ब्रह्मरंध के पास रहता हे - यह ग्रंथि जितनी ज्यादा संवेदनशील होती हे, मानव का विकास उतना ही अधिक होता हे |
मन्त्र पुरुश्चरण और अनुष्ठान के समय शिखा को गांठ मारनी चाहिए | इसका कारण यह हे की गांठ मारने से मन्त्र स्पंदन द्वारा उत्पन्न होने वाली उर्जा शारीर में एकत्रित होती हे | और शिखा की वजह से यह उर्जा बहार जाने से रुक जाती हे | और हमें मन्त्र और जप का सम्पूर्ण लाभ प्राप्त होता हे
रेमेडियल एस्ट्रोलोजर ऋषि पंड्या - वड़ोदरा - गुजरात मोबाईल : 9824162904
Really Good Information for New Generation.......Jay Shree KRISHNA
ReplyDelete